Mahatma gandhi’s life event
2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। इस मौके Vijayrampatrika.com गांधी जी के जीवन से जुडी़ रोचक बातों और उनके विचारों से आपको अवगत कराएगा।
इस कडी़ में आज पढे़ं उस एक घटना के बारे में जो गांधीजी के जीवन में एक अहम पड़ाव साबित हुई। इस घटना के बाद गांधीजी ने किसी भी उस तरह के कार्यक्रम में जाना बंद कर दिया था जिसमें दलित व हरिजन को नहीं बुलाया गया हो।
चम्पारन में संबोधन के बाद से बदल गए गांधी
गांधीजी की विचार-शैली में दक्षिण अफ्रीका में आए परिवर्तन के ही समान परिवर्तन उस समय आया जब बिहार के किसान राजकुमार शुक्ला ने उन्हें बिहार आमंत्रित किया और उन्होंने चम्पारन में आंदोलन किया। इसी बिहार यात्रा में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के साथ कुरीतियों और अंधविश्वासों के उन्मूलन को शामिल करके अपने नज़रिये में समस्त मानवता के दुख को सम्मिलित किया। गांधीजी का विश्वास था कि राजनीतिक स्वतंत्रता मात्र से कुछ नहीं होगा, सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता ही मानवता की रीढ़ की हड्डी है।
बताया जाता है कि चम्पारन में गांधीजी किसी उत्सव में गए थे वहां इस वर्ग के जाने की मनाही थी। गांधीजी को यह अच्छा नहीं लगा। इसके बाद गांधीजी ने बिहार के चम्पारन आंदोलन के बाद ही यह निर्णय लिया कि वे शादी या किसी उत्सव के ऐसे आयोजन में नहीं जाएंगे, जिसमें दलित व हरिजन आमंत्रित नहीं किए जाएंगे। अत: गांधीजी की विचार-शैली में जितने महत्वपूर्ण परिवर्तन उनके दक्षिण अफ्रीका में सत्य के प्रयोग के साथ आए उतने ही महत्वपूर्ण बिहार यात्रा व चम्पारन आंदोलन के समय आए। गांधीजी का प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र में पड़ा।
दिए गए फोटोज़ छुएं और अंदर स्लाइड्स में पढें गांधी जी ने कभी क्यों नहीं पहनी टोपी, नहीं देखी कोर्इ फिल्म और कैसा रहा पत्रकारिता पर उनका प्रभाव…...
1. गांधीजी का पत्रकारिता पर प्रभाव :- साहित्य में प्रेमचंद गांधी के आदर्श का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। पत्रकारिता में इसी तरह का काम सच्चिदानंद सिन्हा, कस्तूरी श्रीनिवास, शिवराज के. नटराजन, सीवाई चिंतामणि इत्यादि ने किया। गांधीजी के आदर्श का निर्वाह फिल्मों में संपतलाल ने ‘महत्मा विदुर,’ बाबूलाल पेंटर, शांताराम व मेहबूब खान किया। फिल्म जगत में गांधी व नेहरू का सम्मिलित प्रभाव ख्वाजा अहमद अब्बास, चेतन आनंद, राज कपूर इत्यादि पर रहा। पृथ्वीराज के अधिकांश नाटक जैसे ‘आहूति’ व ‘दीवार’ व ‘पठान’ इत्यादि भी गांधी आदर्श से प्रेरित थे। आगे की स्लाइड्स में देखें और बातें…
2. गांधीजी ने कभी नहीं देखी फिल्म : -महात्मा गांधी ने कई करिश्मे किए मसलन कभी फिल्म नहीं देखी, फिर भी उनके आदर्श से प्रेरित अनेक फिल्में भारत में ही नहीं वरन् विदेशों में भी बनीं। उनकी 1931 में चार्ली चैपलिन से मुलाकात और मशीनों के शोषण करने वालों के हाथ में रहना तथा भविष्य में मानव को मशीन का गुलाम बनने के भय से प्रेरित चार्ली चैपलिन ने 1936 में मॉडर्न टाइम्स बनाई। उनकी भूमिहीन किसान की चिंता ‘ग्रेप्स ऑफ रेथ’ में भी स्पष्ट नज़र आती है। रिचर्ड एटनबरो ने बेन किंग्सले अभिनीत ‘गांधी’ इतनी प्रभावोत्पादक बनाई कि कई सरकारी इमारतों में बेन किंग्सले की तस्वीर ही गांधीजी की समझकर लगाई गई।
3. गांधी नहीं नेहरू टोपी है ये :- महात्मा गांधीजी ने अपने जीवन में कभी टोपी नहीं पहनी। यह भी गांधीजी का ही करिश्मा है कि नेहरूजी द्वारा पहने जाने वाली टोपी को गांधी कैप मानकर पहना गया। गांधीजी ने तो कभी टोपी पहनी ही नहीं वरन् अपनी अहिंसा से अंग्रेजों को अपनी अकड़ का हैट उतारने पर मजबूर किया। बहरहाल ‘गांधीजी की टीपो’ ऐसी फ्री साइज है कि उसे हर कोई पहन सकता है, यहां तक कि उनके कातिल के चाहने वाले भी आजकल गांधीजी की दुहाई देते नज़र आते हैं। गांधीजी ऐसे लचीले संविधान की तरह है, जिसकी शपथ कोई भी नकारात्मक प्रवृत्ति वाला व्यक्ति भी सहर्ष ले सकता है।
4. दरअसल, यह लचीलापन भारत की उदात्त संस्कृति का हिस्सा है, जिसमें सभी धर्मों और भाषाओं के लोग उदारमना होकर एक-दूसरे के साथ सदियों से रहते हैं। यह बात अलग है कि आज उसी उदात्त संस्कृति की संकुचित परिभाषा को हंटर बनाकर घुमाया जा रहा है।
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