》AGRO PATRIKA Desk: प्राचीनभारत में ऋषि – मुनि प्रकृति द्वारा प्रदान चीजों से ही बलिष्ठ और नीरोग रहा करते थे। जंगल और पहाडों की तलहटी में मौजूद वनस्पतियों न केवल पेट भरने के काम आती थीं, बल्कि एक से खतरनाक एक रोग भी उनसे दूर हो जाता था। आज भी, आपके आसपास ऐसी तमाम वनस्पति (घास-फूंस) मौजूद हैं, जिन्हें अगर यूज किया जाए तो शाकाहार के साथ-साथ नेचुरल ट्रीटमेंट के विकल्प तलाशे जा सकते हैं।
Vijayrampatrika.com यहां समय-समय पर उपयोगी पेड़-पौधों के बारे में बताता रहा है। जिन्हें आम आदमी मेथॉड्स सहित आसानी से यूज कर सकता है। कुछ वनस्पति खारे पानी को मीठा बनाने में कारगर हैं तो कर्इ से 70-80 परेशानियां खत्म की जा सकती हैं। इसी कडी़ में आज आप जानेंगे जमीन पर उगने वाली घास की एक खास प्रजाति के बारे में, जिसके सेवन से सूखापन दूर किया जा सकता है, पूजा-पद्घति भी संपन्न की जाती हैं……..
दूब घास/ Cynodon dactylon Plant
घास। यानी वो पौधा जिसकी रोटियां हिंदु महा राजा राणा प्रताप ने खार्इ थीं। इसी की ‘केनडोन डैक्टेयलॅान’ किस्म उत्तर भारत के मैदानी भागों में खूब पार्इ जाती है। खेत ही नहीं शायद आपके घर के आसपास भी उग रही होगी। घास वैसे तो हजारों तरह की होती है, लेकिन इस वनस्पति को भारतीय क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से पहचाना जाता है। हिंदी में इसे दूब, दूबड़ा तो संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली कहते हैं।
कहां-क्या हैं इसके नाम
महाराष्ट्र के भी कुछ हिस्सों में यह खूब पार्इ जाती है, वहां इसे पाढरी दूर्वा या काली दूर्वा के नाम से जाना जाता है। गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो तो इंग्लिश में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन भी कहते हैं। बंगाली लोग इसे नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामों से पहचानते हैं। इस प्रकार शायद ही कोर्इ ऐसा किसान हो, जो इस वनस्पति को नहीं जानता हो। गाय, भैंस, घोडी़, मृग आदि शाकाहारी पशु तो इसके लिए तुरियाते हैं। इसे चाव से खाने में अलग ही स्वाद आता है।
इस घास के फायदे
ब्रजभूमि के 72 वर्षीय बुजुर्ग रामशरन यादव, प्राकृतिक औषधियों के पुराने जानकार हैं। उन्होंने बताया कि गणेश पूजन में दूर्वा का उपयोग तो सभी करते हैं, लेकिन कम ही लोग खाने के तौर पर जानते होंगे। गुजरात में इसके बिना आध्यात्मिक अनुष्ठान संपन्न नहीं होते, दूब (dūrvā grass) प्रत्येक पूजा-पद्घति में अनिवार्य है। मानव में त्रिदोष को हरने वाली यही ताे एक औषधि है। वात कफ, पित्त सरीखे विकार इसके सेवन से दूर रहते हैं।
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