प्रकृति ने इतनी सुविधाएं हमें सौंपी हैं कि ज्यादातर लोग तो इनको यूज करना भी नहीं जानते। हो न हो आपके घर के पास उग सकने वाली घास भी कम काम की नहीं होती और गांवों, खेतों में तो मेंड-नालियों पर एक से बढकर बढिया पेड़-पौधे ऐसे मिल जाएंगे जिन्हें हम दैनिक प्रयोग में ले सकते हैं। आपने देखा ही होगा एकाद बार कि बंसुरी नामक छोटा सा पेड़ जिसे भैंस-गाय जैसे पशु भी बडे़ चाव से खाते हैं, से इंसान कुओं और नदियों का खारा पानी इसकी पत्तियां खाकर स्वादिष्ट बना सकता है। आप चौंकिए नहीं जनाब, ऐसे ही पौधे लगभर हर प्रांत में पाए जाते हैं। खेत, मैदानी भागों, सड़क के किनारे और जंगलों में प्रचुरता से पाए जाने वाले इन पौधों को अधिकतर लोग फालतू समझकर फेंक देते हैं। दरअसल, इसका कारण ये है कि इन्हें किसी खरपतवार से कम नही माना जाता है। यदि आप भी आज तक इन पौधों को फालतू समझते आए हैं तो अब से हम आपको बताते हैं इन पौधों के खास गुणों के बारे में –
वंसुरी का पौधा-

कुछ-कुछ ऐसा होता है वंसरी पौधा, लेकिन ये वो है नहीं। अपिहार्य कारणों से हम आपको इसका फोटो दिखा नहीं पा रहे हैं।
आकार के नजरये से इसे देखें तो यह वैसे ही खेतों में खडे़ पौधों में से ही है, यह खासकर ऐसे समय ज्यादा उगता है जब गर्मियां की दोपहरी का सीजन शुरू हो जाता है, कुछ ही लोग इसके बारे में जानते हैं और वे चरावाह ही ज्यादा हो सकते हैं । जब वे कई-कर्इ किलोमीटर तक निकल जाते हैं तो प्यास लगती है उूपर से ताप लगती है वो अलग । इसलिए चरावाहे या किसान या आम लोग इस वंसरी पौधे की 7-8 पत्तियां तोड़कर चबाते हैं फिर पानी पीते हैं, जो बड़ा ही मधुर लगता है। मथुरा के गांव ततारपुर के एक ग्रामीण मोहनश्याम के अनुसार ये पौधा पहले लोगों की नजर में औषधि के समान था, लेकिन अब प्रकृति के ऐसे अनमोल उपहारों के बारे में कौन जानता है। बुजुर्ग लोग तो अब भी कई तरह की जडी-खरोटी इस्तेमाल करते रहे हैं ।.

खेतों में न जाने कितनी जडी-बूटियां हैं, इसका महत्व तो इन्हें समझने से ही पता चलेगा। तमाम घास-चीडों में मौजूद बंसरी केवल उसे पहचानने वालेे को ही दिखाई देती है।
लटजीरा
या Chirchita-
ये पौधा भी लगभग हर सूबे में मिल जाता है, ये चिरचटा भी कहते हैं। इस चुभंतू पौधे को आप घास-फूंस ही समझेंगे । कुछ आयुर्वेदिकों के अनुसार यह कढ़ी बनाने में बढिया रोल अदा करता है। इतना ही नहीं चिरोटा के बीजों को पानी में पीसकर रोग से प्रभावित अंग पर लगाएं। इससे दाद-खाज और खुजली की समस्या खत्म हो जाती है। आधुनिक विज्ञान भी इसके एंटी-बैक्टीरियल गुणों को साबित कर चुका है।
इससे कढी बनाने के लिए लगभग 50 ग्राम पत्तियों को 2 कप पानी में उबालें। यह पानी उबाल कर आधा कर लें। इसे लेने से पीलिया दूर हो जाता है। आप अपने अडौसी-पडौसिओं को भी इसके गुण समझा सकते हैं, पहले आप खुद जान लीजिए। सब्जी बनाने में पांच-छैः पत्तियां इसकी ले सकते हैं चूंकि माना जाता है कि यह बहुत पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है।

ये हर जगह आसानी से पाया जाता है|इस को आयुर्वेद में अपामार्ग के नाम से जाना जाता है| पहचान की दृष्टि से देखा जाए तो इसके पत्ते कुछ गोल व खुरदुरे होते है, इसके तने व टहनियाँ गाँठ युक्त होते है साथ ही इसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसके फूल छोटे छोटे कांटेदार होते है जिसके निकट जाने से यह कपड़ो पर चिपक जाता है| यह जंगली वनस्पति कई रोगों जैसे बवासीर, फोड़े फुंसी, पायरिया दमा,मधुमेह, विषैले जंतु दंश, पेट दर्द इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| भिन्न भिन्न रोगों में इसे भिन्न भिन्न प्रकार से लिया जाता है जैसे- किसी भी प्रकार के फोड़े फुंसी पर चिचड़ी की पत्ती पीसकर उसमें सरसों का तेल मिलाकर गर्म करके लगाने से फोड़े फुंसी या तो बैठ जाते है या पक कर फूट जाते हैं| चिचड़ी (अपामार्ग) की जड़ की दातुन दांतों के हर प्रकार के रोगों में चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| बवासीर रोग में चिचड़ी के सात आठ पत्ते, उतने ही काली मिर्च के दाने को पीसकर दिन में एकबार एक कप पानी में डालकर पीने से बवासीर का खून निकलना बंद हो जाता है| सुगर रोग में इसके पत्ते का रस नियमित सेवन करना श्रेयष्कर होता है| विषैले जंतुओं के काटने पर चिचड़ी के पत्ते व जड़ का रस पिलाने व काटे हुए स्थान पर लगाने से विष का प्रभाव समाप्त होने लगता है| इसी प्रकार चिचड़ी के विभिन्न प्रकार से प्रयोग से पेट का दर्द, दमा, अफारा, खांसी इत्यादि में भी अपना लाभकारी प्रभाव दिखाते हैं| वनौषधियों के साथ-साथ अगर आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का भी प्रयोग किया जाये तो लाभकारी प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है|
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>> इसके बीज एक गिलास पानी में औटाएं फिर पीएं । यह काढ़ा बच्चों को देने से पेट के कृमि मर जाते है।
>> इस चुभंतू पौधे की पत्तियों को बारीक पीसकर दाद-खाज, खुजली, घाव आदि पर लगाया जाए, तो शीघ्र आराम मिल जाता है।
>> सर्दी और खांसी में इस चुभंतू पौधे के पत्तों का रस लेना बहुत गुणकारी होता है। दिन में दो से तीन बार इस रस का सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
>> इस चुभंतू पौधे के बीजों को पानी में उबाल लें। इस काढ़े को लेने से लिवर (यकृत) की समस्या में आराम मिलता है।
>> इस चुभंतू पौधे की पत्तियों के काढ़े को दांतों पर लगाएं। इसी काढ़े से कुल्ला करने से दांतों की समस्या, जैसे दांत दर्द, मसूड़ों से खून आना आदि समस्याओं में आराम मिलता है।
>> इस चुभंतू पौधे के पत्तों के साथ हींग चबाने से दांत दर्द में तुरंत आराम मिलता है। दांतों से निकलने वाले खून को भी रोकने में यह काफी कारगर होता है। मसूड़ों से खून आना, बदबू आना और सूजन में लटजीरा की दातून उपयोग लाने पर तुरंत आराम मिलता है।
>> इस चुभंतू पौधे के बीजों को मिट्टी के बर्तन में भूनकर सेवन करें। इससे भूख कम हो जाती है। वजन घटाने के लिए भी यह एक कारगर उपाय है। और सुनिए इस चुभंतू पौधे के तने को पीसकर कत्थे के साथ मिलाएं। इसमें 2-4 पत्तियां सीताफल की कुचलकर डाल दें। ये सारा मिश्रण पके हुए घाव पर लगाएं। इससे घाव में आराम मिल जाता है।
दूब घास में होता है आदमी का दम
जी हां, लोग भले ही हल्कें में लें , लेकिन भारत के इतिहास में ऋषि-मुनि और दिव्य पुरूष तो स्वर्ग पौधे जैसी दूब का ही सेवन कर भूख शांत करते थे। कुछ जानकार तो आज भी इसकी हरी-कच्ची पत्तियां खाते हैं। घोडे की ताकत भी इस पर निर्भर है गावों में तो । और महाराणा प्रताप जैसे महान पुरूष इसके ही सेवन के साथ-साथ जीवन भर संघर्ष करते रहे। इन बातों को पढने के बाद शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो दूब को नहीं जानता होगा| हाँ यह अलग बात है कि हर क्षेत्रों में तथा भाषाओँ में यह अलग अलग नामों से जाना जाता है| हिंदी में इसे दूब, दुबडा| संस्कृत में दुर्वा, सहस्त्रवीर्य, अनंत, भार्गवी, शतपर्वा, शतवल्ली| मराठी में पाढरी दूर्वा, काली दूर्वा| गुजराती में धोलाध्रो, नीलाध्रो| अंग्रेजी में कोचग्रास, क्रिपिंग साइनोडन| बंगाली में नील दुर्वा, सादा दुर्वा आदि नामो से जाना जाता है| इसके आध्यात्मिक महत्वानुसार प्रत्येक पूजा में दूब को अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है| इसके औषधीय गुणों के अनुसार दूब त्रिदोष को हरने वाली एक ऐसी औषधि है जो वात कफ पित्त के समस्त विकारों को नष्ट करते हुए वात-कफ और पित्त को सम करती है|
त्रिदोष नाशक है दूब घास
दूब सेवन के साथ यदि कपाल भाति की क्रिया का नियमित यौगिक अभ्यास किया जाये तो शरीर के भीतर के त्रिदोष को नियंत्रित कर देता है, यह दाह शामक,रक्तदोष, मूर्छा, अतिसार, अर्श, रक्त पित्त, प्रदर, गर्भस्राव, गर्भपात, यौन रोगों, मूत्रकृच्छ इत्यादि में विशेष लाभकारी है| यह कान्तिवर्धक, रक्त स्तंभक, उदर रोग, पीलिया इत्यादि में अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाता है| श्वेत दूर्वा विशेषतः वमन, कफ, पित्त, दाह, आमातिसार, रक्त पित्त, एवं कास आदि विकारों में विशेष रूप से प्रयोजनीय है| सेवन की दृष्टि से दूब की जड़ का 2 चम्मच पेस्ट एक कप पानी में मिलाकर पीना चाहिए|.
ब्रह्मी का अमृतरूपी पौधा-

ब्रह्मी का पौधा
पाचन तंत्र को पुष्ट करता है “पुदीना”
पूरे भारत वर्ष में पाया जाने वाला पौधा पुदीना किसी परिचय का मोहताज नही है | हाँ इतना जरुर है कि विभिन्न भाषाओं में यह भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है | हिंदी में इसे पुदीना और पोदीना, मराठी में पंदिना, बंगला में पुदीना, संस्कृत में पूतिहा, पुदिन:, गुजराती में फुदिनो, अंग्रेजी में स्पियर मिंट तथा लैटिन भाषा में मेंथा सैटाइवा व मेंथा विरिडस इत्यादि नामों से जाना जाता है|
गुण धर्म व प्रयोग की दृष्टि से देखा जाये तो यह कफ वात शामक, वातानुमोलक, कृमिघ्न, हृदयोत्तेजक, दुर्गन्धनाशक, वेदना स्थापक, कफ नि:सारक है|
>> अरुचि, अपच, अतिसार, अफारा, श्वास, कास, ज्वर, मूत्ररोग इत्यादि में अति उत्तम माना गया है| वैसे तो पुदीना पूरे वर्ष पाया जाता है किन्तु इसका सर्वाधिक उपयोग गर्मियों में होता है| पुदीने में पाया जाने वाला एपटाइजर गुण उदर सम्बन्धी समस्याओं के लिए अमृत का काम करता है, जिससे पाचन तंत्र संतुलित रहता है| पुदीने के अन्दर पाए जाने वाले सुगंध मात्र से ही “लार ग्रंथि” (स्लाइवा ग्लैंड) सक्रिय हो जाता है जो पाचन क्रिया में अहम् भूमिका निभाता है| पुदीने का नित्य थोडा सा किसी न किसी रूप में सेवन तथा योगासन के अंतर्गत आने वाला वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय रखने के लिए सर्वोत्तम है| यह याद रहे कि भोजनोपरांत दस मिनट तक वज्रासन में बैठने से पाचन क्रिया तीव्र व संतुलित रहती है| गर्मियों में चलने वाली लू (गर्म हवा) द्वारा शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावो को भी पुदीना मिश्रित “पना” नाकाम करता है| पुदीना का एक सबसे महत्वपूर्ण गुण यह भी है कि यह एसिडिटी के कारण उत्पन्न होने वाले पेट में जलन व सूजन को भी ठीक करता है| पुदीने की पत्ती को पीस कर माथे पर लेप करने से माईग्रेन के दर्द में भी राहत मिलती है| पुदीने के सेवन से श्व्वास की बदबू भी पूरी तरह से नियंत्रित हो जाती है| आमतौर पर उच्च रक्तचाप व निम्न रक्तचाप दोनों की दवा अलग – अलग होती है किन्तु पुदीना रक्तचाप की ऐसी औषधि है जो निम्न और उच्च दोनों ही रक्तचाप के लिए लाभकारी है| यह ध्यान रहे कि उच्चरक्तचाप के मरीज पुदीना सेवन में शक्कर व नमक का प्रयोग न करें| तथा निम्न रक्तचाप के मरीज को पुदीने में कालीमिर्च व सेंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए|
वँसुरी का पौधा या बिज कहा मिलेगा
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यह आपको उष्ण कटिबंधीय, वर्षा वाले क्षेत्रों में मिल सकता है। खासकर पश्चिमी उप्र व पूर्वी राजस्थान में, जहां जमीन पानी को जल्दी नहीं सोखती। मथुरा, भरतपुर, इटावा आदि जिलों के किसान वंसुरी के पौधे का इस्तेमाल बखूबी करते रहे हैं।
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मुझे हत्था जोडी के पौधे का चित्र भेजे
और ये कहाँ मिलेगा बतायें
7275782907–whatsaap
pankaj21anagar@gmail.com
आपकी अति कृपा होगी
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bhagra ke plant ka photo bheje or batae kaha milega aapki ati kirpa hogi
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Mujhe vircha jri aur merugandha ka chitra aur Milne ka sthan btaeye ji
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