छत्तीसगढ़ अपने पारंपरिक माहौल से परे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। यहां आदिवासी सभ्यता और संस्कृति आज भी कायम हैं जिनको करीब से जानने और देखने के लिए विदेशी अक्सर भारत आते हैं। सांस्कृतिक विरासत, पुरातात्विक स्थल, झरने, प्राचीन गुफाएं और वन्यजीव यहां देखे जा सकते हैं। आज से करीब 15 वर्ष पहले मध्य प्रदेश के सोलह दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों को विभाजित करके एक नए राज्य का गठन किया गया। इसे छत्तीसगढ कहा गया। इससे पहले इस क्षेत्र को दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था।
1 नवंबर को इस राज्य का स्थापना दिवस है। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं छग के बारे में खास फैक्ट्स। यह न केवल प्राचीन काल से वैदिक बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केंद्र रहा है। आज देखें छत्तीसगढ़ के पांच प्रमुख आकर्षण केंद्र और करें यहां की सैर……….
1. चित्रकोट फॉल्स
जगदलपुर से 39 किमी दूर इंद्रावती नदी पर एक खूबसूरत जलप्रपात नजर आता है। यही है चित्रकोट झरना। अपने घोड़े की नाल समान मुख के कारण इस फॉल्स को भारत का निआग्रा भी कहा जाता है। दुनियाभर से चित्रकोट को देखने के लिए साल में हजारों पर्यटक छत्तीसगढ़ आते हैं। बरसात के मौसम में मिट्टी के कटाव के कारण भूरे रंग के छाया में आश्चर्यजनक सुंदर लगता है, जबकि गर्मियों में झरना क्रिस्टल रंग में स्पष्ट दिखाई देता है। भारत का सबसे चौड़ा झरना कहे जाने वाला चित्रकोट जलप्रपात का मनोरम दृश्य भव्य और शानदार है।
इस फोटो में ही है चित्रकोट जलप्रपात। मन है, यहां तो राजधानी रायपुर से 340 किमी है दूरी, बस से जा सकता है पहुंचा। दिए गए चार फोटोज छुएं अब। स्लाइड्स में अंदर जानें छत्तीसगढ की बाकी जगहों के बारे में…
2. इंद्रावती नेशनल पार्क : छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय और सबसे मुख्य वन्यजीव उद्यानों में से एक यही माना जाता है। 1983 में इस पार्क को टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया है और जल्द ही भारत के सबसे मशहूर बाघ अभयारण्यों में से एक बन गया। अभयारण्य में तेंदुए, बंगाल टाइगर, स्लॉथ बीयर, जंगली कुत्ता, चार सींग वाले मृग, धारीदार हाइना और कई विलुप्त प्रजातियों के जानवर रहते हैं। आगे का फोटो क्लिक कर दर्शन करें भोरमदेव मंदिर में…
3. भोरमदेव मंदिर : छत्तीसगढ़ के कवर्धा शहर में स्थित भोरमदेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। यह भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर को नाग राजवंश के राजा रामचंद्र लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहां खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। यहां पर नृत्य की आकर्षक भाव भंगिमाएं के साथ-साथ हाथी, घोड़े, भगवान गणेश एवं नटराज की मूर्तियां चंदेल शैली में उकेरी गई हैं। भोरमदेव महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पयर्टक इकट्ठा होते हैं। ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक महत्व को स्थानीय कलाकार की अपनी प्रतिभा के जरिए लोगों को साझा करते हैं।
4. कांकेर : छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित कांकेर जिले में कई रमणीय पर्यटक स्थल हैं। कांकेर पैलेस, झरना, जंगल, विभिन्न प्रकार के लकड़ी, गडिय़ा पर्वत और लकड़ी आदि के आकर्षणों के कारण कांकेर की ओर पर्यटन तेजी से उभर रहा है। आदिवासी गांवों की संस्कृति और लकड़ी के नक्काशी वाले हस्तशिल्प व बांस की वस्तुओं की कलाकृतियां कांकेर की पहचान है। 12 वीं सदी में कांकेर पैलेस में शाही परिवार रहते थे। महल के कुछ हिस्सों को एक होटल में तब्दील कर दिया गया है।
5. कोटमसर गुफा : संभाग मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान में कोटमसर गुफा स्थित है। माना जाता है कि इस गुफा की लंबाई 4500 मीटर तक है। चूना पत्थर के घुलने से बनी ये गुफाएं चूना-पत्थर के जमने से बनी संरचनाओं के कारण प्रसिद्ध हैं। पाषाणयुगीन सभ्यता के चिन्ह आज भी यहां मिलते हैं। कोटमसर की गुफा अपने प्रागैतिहासिक अवशेषों, अद्भुत प्राकृतिक संरचनाओं और विस्मयकारी सुंदरता के लिए मशहूर है। कोटमसर गुफा पर्यटकों के लिए नवंबर में खोल दिया जाता है।
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