सामान्यत: लोगों और वैज्ञानिक नजरिए में कहा जाता है कि धरती पर जन्मे प्राणी की एक न एक दिन मृत्यु निश्चित है। सभी महजबों के ग्रंथों और मान्यताओं में भी बताया गया है कि जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता में भी अर्जुन को यही ज्ञान दिया था कि सिर्फ आत्मा अमर है और यह निश्चित समय के लिए अलग-अलग शरीर धारण करती है। शरीर नश्वर है, लेकिन शास्त्रों में आठ ऐसे लोग भी बताए गए हैं, जिन्होंने जन्म लिया है और वे हजारों सालों से देह धारण किए हुए हैं यानी वे अभी भी सशरीर जीवित हैं।
》जीवन दर्शन Desk: महाभारत काल के एक वीर अश्वत्थामा अभी तक जीवित हैं। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने उन्हें चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। कहा जाता है कि वे अब कलयुग में भी (धरती पर) शशरीर हैं और कुछ जगहों पर देखे जाने की चर्चा भी हुर्इ हैं। इनके अलावा भी 7 और लोग ऐसे हैं, जिनके प्राण यमराज अब तक नहीं हर पाए। प्राचीन मान्यताओं के आधार पर यदि कोई व्यक्ति हर रोज इन आठ अमर लोगों (अष्ट चिरंजीवी) के नाम भी लेता है तो उसकी उम्र लंबी होती है।
1. हनुमान जी – कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। मां सीता ने हनुमान को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद आशीर्वाद दिया था कि वे अजर-अमर रहेंगे। अजर-अमर का अर्थ है कि जिसे ना कभी मौत आएगी और ना ही कभी बुढ़ापा। इस कारण भगवान हनुमान को हमेशा शक्ति का स्रोत माना गया है क्योंकि वे चीरयुवा हैं।
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भगवान हनुमान के विषय में तो आप जानते ही हैं, लेकिन शेष और कौन-कौन चिरंजीवी हैं, उनके नाम और संक्षिप्त परिचय देखने के लिए छुएं फोटोज़, अंदर पढें स्लाइड्स में….
2. अश्वथामा- ग्रंथों में भगवान शंकर के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है। उनमें से एक अवतार ऐसा भी है, जो आज भी पृथ्वी पर अपनी मुक्ति के लिए भटक रहा है। ये अवतार हैं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का। द्वापरयुग में जब कौरव व पांडवों में युद्ध हुआ था, तब अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था। अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के सम्मिलित अंशावतार थे। ये अत्यंत शूरवीर, प्रचंड क्रोधी स्वभाव के योद्धा थे। ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था। आगे की स्लाइड्स में पढिए और कौन हैं कलयुग में जीवित……
3. कृपाचार्य- महाभारत में कौरवों और पांडवों के गुरु थे। यह गौतम ऋषि के पुत्र हैं। इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। इस तरह कृपाचार्य, अश्वथामा के मामा हैं। महाभारत के अनुसार, कृप अमर हैं। युद्घ के दौरान यह भी कौरवों के पक्ष में रहे थे।
4. ऋषि मार्कण्डेय- पिता द्वारा ठीक से भरण-पोषण न हो पाने पर, मार्कण्डेय बालवस्था में ही भगवान शिव के परम भक्त हो गए। इन्होंने शिवजी को तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि की। जब यमराज इनके प्राण लेने आए तो भगवान शिव ने यम को रोक दिया, यह चिरंजीवी बन गए।
5. विभीषण- राक्षस राज रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। यह भी अमर माने गए हैं।
6. राजा बलि- शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे।
7. ऋषि व्यास- ये ऋषि भी अष्ट चिरंजीवी हैं और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों की रचना भी की थी। महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। इन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला था। इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए। कहा जाता है कि एक रात के लिए इन्होंने मृत कौरवों को जीवित कर दिया था।
8.परशुराम- भगवान विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम। परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं का अंत किया था। ग्रंथों के अनुसार इनका प्रारंभिक नाम राम था। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। शिवजी तपस्या से प्रसन्न हुए और इन्हें अपना फरसा (एक हथियार) दे दिया। इसी वजह से ये परशुराम कहलाने लगे।
– आप अष्ठचिरंजीवियों के बारे में जान चुके हैं। मान्यताओं के अनुसार, लंबी उम्र पाने के लिए हर रोज सुबह-सुबह अन्य पूजन कर्मौं के साथ यदि कोर्इ यहां बताए गए ( अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।। ) श्लोक का भी जप करता है तो मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है। इस श्लोक का अर्थ यह है कि इन आठ लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं, उसकी उम्र बढ़ती है।
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